आठवाँ वेतन आयोग: न्यूनतम वेतन में 186 प्रतिशत तक उछाल की उम्मीद, कर्मचारी संगठन अपनी मांगों पर अड़े 

आठवाँ वेतन आयोग: न्यूनतम वेतन में 186 प्रतिशत तक उछाल की उम्मीद, कर्मचारी संगठन अपनी मांगों पर अड़े 

आठवाँ वेतन आयोग: न्यूनतम वेतन में 186 प्रतिशत तक उछाल की उम्मीद, कर्मचारी संगठन अपनी मांगों पर अड़े

केंद्रीय सरकार के 50 लाख से अधिक कर्मचारियों और 65 लाख पेंशनभोगियों की निगाहें आठवें वेतन आयोग (8th CPC) पर टिकी हुई हैं। नवंबर 2025 में कैबिनेट द्वारा मंजूर टर्म्स ऑफ रेफरेंस (ToR) के बाद आयोग की आगे की प्रक्रिया तेज हो गई है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि न्यूनतम बेसिक वेतन वर्तमान ₹18,000 से बढ़कर ₹47,520 से ₹51,480 तक पहुँच सकता है, जो 164% से 186% की भारी वृद्धि का संकेत देता है। कर्मचारी संगठनों ने फिटमेंट फैक्टर 3.68 तक की मांग उठाई है, लेकिन सरकार DA मर्जर से इनकार कर चुकी है। आयोग का कार्यकाल 18 महीने का है। इसकी सिफारिशें 1 जनवरी 2026 से लागू होगी। इसके लागू होने पर यह लाखों परिवारों के लिए ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है।

पिछले आयोगों की तुलना: वृद्धि का सफर

वेतन आयोग हर दशक में कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति को महंगाई के अनुरूप बदलाव लाता है। छठे वेतन आयोग (2006 से लागू) ने न्यूनतम वेतन को ₹7,000 प्रतिमाह कर दिया था, जबकि सातवें (2016 से लागू) ने इसे ₹7,000 से बढ़ाकर ₹18,000 (लगभग 157% वृद्धि) पर पहुँचाया। जबकि वास्‍तविक वृद्धि सिर्फ 14.29% रहा। अब आठवें आयोग में महंगाई (CPI में 50% से अधिक DA) और निजी क्षेत्र के वेतनों से तुलना को देखते हुए बड़ा कदम अपेक्षित है।

विशेषज्ञ रिपोर्ट्स के अनुसार, फिटमेंट फैक्टर वर्तमान 2.57 से ऊपर ही यह तय करेगा कि वृद्धि कितनी होगी। Ambit Capital की रिपोर्ट में 1.83 से 2.46 का अनुमान है, जो न्यूनतम वेतन को ₹32,940 से ₹44,280 तक ले जाएगा। वहीं, Kotak की रिपोर्ट ₹30,000 का लक्ष्य बता रही है, जो GDP का 0.8% अतिरिक्त बोझ डालेगा। अधिकतम अनुमान (2.86 फैक्टर) पर ₹51,480 संभव है, जो पेंशन को ₹9,000 से ₹25,740 तक बढ़ा सकता है।

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Eighth Pay Commission: Minimum wage expected to rise by 186 percent, employee organizations adamant on their demands

संभावित न्‍यूनतम वेतन को निम्‍नलिखित तालिका से समझा जा सकता है:

वेतन आयोग न्यूनतम बेसिक फिटमेंट फैक्टर वेतन (₹) वृद्धि (%)
6th (2006) 2,550 → 7,000 1.86 174%
7th (2016) 7,000 → 18,000 2.57 157%
8th (2026, अनुमान) 18,000 → 47,520-51,480 2.64-2.86 164% – 186%

उपरोक्‍त तालिका पिछले ट्रेंड्स पर आधारित है। कुल रियल वृद्धि 20-35% रहने की संभावना है, लेकिन DA रीसेट होने से तत्काल लाभ सीमित हो सकता है।

वर्तमान DA 50% से अधिक होने के बावजूद सरकार ने मर्जर से इनकार किया है, जिससे वृद्धि पूरी तरह आयोग पर निर्भर है। वेतन आयोग की सिफारिशों का असर HRA, TA जैसी भत्तों पर भी पड़ेगा।

कर्मचारी संगठनों की मांगें: DA मर्जर से पुरानी पेंशन तक

कर्मचारी संगठन, खासकर नेशनल काउंसिल जॉइंट कंसल्टेटिव मशीनरी (NC-JCM), आक्रामक मोड में हैं। NC-JCM के नेता श्री शिव गोपाल मिश्रा ने जून 2025 में ही आयोग गठन की मांग की थी। दिनांक 02 दिसंबर 2025 को वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने ToR में पेंशन का जिक्र नहीं होने पर स्पष्टिकरण दे दिया है, लेकिन कर्मचारी संगठनों की नाराजगी अभी भी बरकरार है।

मुख्य मांगें:

  1. 8वीं केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) के संदर्भ-शर्तों (Terms of Reference) में संशोधन, जिसमें कर्मचारी महासंघ (Confederation) और स्टाफ साइड NC-JCM द्वारा वेतन और पेंशन संशोधन तथा अन्य मुद्दों पर दिए गए सुझाव/मत शामिल किए जाएं।
  2. 50% महंगाई भत्ता (DA/DR) को मूल वेतन/पेंशन में विलय किया जाए तथा 1.1.2026 से वेतन/पेंशन का 20% अंतरिम राहत (IR) के रूप में प्रदान की जाए।
  3. NPS/UPS को समाप्त कर, सभी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (OPS) को पुनर्स्थापित किया जाए।
  4. पेंशनरों के बीच कोई भेदभाव न किया जाए, चाहे वह सेवानिवृत्ति की तिथि या केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर हो।
  5.  कोविड महामारी के दौरान रोकी गई 18 महीनों की DA/DR की तीन किस्तें कर्मचारियों और पेंशनरों को जारी की जाएं।
  6. पेंशन के कम्यूटेड हिस्से की बहाली 15 वर्ष की जगह 11 वर्ष में की जाए। करुणामूलक नियुक्ति (Compassionate Appointment) पर लगाए गए 5% के प्रतिबंध को हटाया जाए, और दिवंगत कर्मचारी के आश्रित/परिजनों को सभी योग्य मामलों में करुणामूलक नियुक्ति प्रदान की जाए।
  7. सभी विभागों में रिक्त पदों को भरा जाए, तथा सरकारी विभागों में आउटसोर्सिंग और निगमितीकरण (corporatization) को रोका जाए।
  8. JCM व्यवस्था के अनुसार संघों/संघ महासंघों का लोकतांत्रिक संचालन सुनिश्चित किया जाए।
    1. लंबित संघों/फेडरेशनों को मान्यता प्रदान की जाए, तथा AIPEU ग्रुप-C यूनियन, NFPE और ISROSA की मान्यता रद्द करने के आदेश वापस लिए जाएं।
    2. सेवा संघों/संघ महासंघों पर नियम 15(1)(c) का थोपना बंद किया जाए।
    3. संघ पदाधिकारियों के खिलाफ प्रतिशोधात्मक कार्रवाई (vindictive victimization) को रोका जाए।
  9. JCM के अंतर्गत बोर्ड ऑफ आर्बिट्रेशन द्वारा दिए गए उन अवॉर्ड्स का तत्काल क्रियान्वयन किया जाए, जिन पर सहमति बन चुकी है, विशेषकर CA Ref. No. 3/2001 के मामले में।
  10. दैनिक वेतनभोगी, आकस्मिक/अनियमित, संविदा कर्मियों तथा GDS कर्मचारियों का विनियमीकरण (regularisation) किया जाए, और स्वायत्त निकायों (Autonomous Bodies) के कर्मचारियों को केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के समान दर्जा दिया जाए।

कर्मचारी संगठनों का कहना है कि ToR में पेंशन रिविजन और OPS का जिक्र न होने से लाखों रिटायर्स प्रभावित होंगे। साथ ही चेतावनी दे रहे हैं कि मांगें पूरी न हुईं तो आंदोलन तेज होगा।

सरकार की चुनौतियाँ और भविष्य की राह

सरकार के लिए यह संतुलन का खेल है। आठवें आयोग से ₹2.4-3.2 लाख करोड़ का अतिरिक्त खर्च होगा, जो बजट पर दबाव डालेगा। फिर भी, चुनावी वर्ष (2028-29) को देखते हुए राजनीतिक फायदा अपेक्षित। कर्मचारी संगठनों को उम्‍मीद है कि आयोग अध्यक्ष जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई 18 महीनों में अपनी अतिंंम रिपोर्ट सरकार को सौंप देगें।

JPMorgan जैसी फर्म्स का मानना है कि यह हाइक उपभोक्ता खपत बढ़ाएगा, जो शेयर बाजार को बूस्ट देगा। लेकिन कर्मचारियों को इंतजार है – क्या यह “सबसे बड़ा तोहफा” बनेगा या समझौते का नतीजा?

कुल मिलाकर, आठवाँ वेतन आयोग आर्थिक न्याय की उम्मीद जगाता है। संगठनों की मांगें सरकार तक पहुँच रही हैं, लेकिन अंतिम फैसला आयोग की रिपोर्ट पर निर्भर। कर्मचारी उत्साहित हैं, पर सतर्क भी।

Disclaimer: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। 8वें वेतन आयोग से संबंधित किसी भी आधिकारिक जानकारी के लिए कृपया भारत सरकार के संबंधित विभाग की आधिकारिक वेबसाइट देखें। 8वें वेतन आयोग के नियम और लाभ सरकार के निर्णयों पर निर्भर करते हैं। किसी भी प्रकार की गलत जानकारी के लिए लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। कृपया सभी जानकारी की पुष्टि आधिकारिक स्रोतों से अवश्य करें।

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