8वीं केंद्रीय वेतन आयोग – घोषणा के 9 महीने बाद भी समिति का गठन नहीं होने से कर्मचारियों और पेंशनभोगियों में बढ़ी चिंता

8वीं केंद्रीय वेतन आयोग – घोषणा के 9 महीने बाद भी समिति का गठन नहीं होने से कर्मचारियों और पेंशनभोगियों में बढ़ी चिंता

8वीं केंद्रीय वेतन आयोग – घोषणा के 9 महीने बाद भी समिति का गठन नहीं होने से कर्मचारियों और पेंशनभोगियों में बढ़ी चिंता

केन्‍द्रीय सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को 8वें केंद्रीय वेतन आयोग (8th Central Pay Commission) घोषणा ने नई उम्मीद दी थी, परन्‍तु अब वह इंतजार चिंता में बदलता जा रहा है। जनवरी 2025 में 8वें केंद्रीय वेतन आयोग (8th Central Pay Commission) के गठन को लेकर कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ेगी। लेकिन 9 महीने बीत जाने के बावजूद न तो आयोग की समिति का गठन हुआ है और न ही इसकी Terms of Reference यानी दिशा-निर्देश तय किए गए हैं।

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क्या है मामला?

देश के लाखों सरकारी कर्मचारी और पेंशनभोगी बेसब्री से 8वें केंद्रीय वेतन आयोग (8th Central Pay Commission) आयोग की सिफारिशों का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि इससे न केवल वेतन में बढ़ोतरी होगी बल्कि पेंशन, भत्तों और कई अन्य आर्थिक पहलुओं पर भी असर पड़ेगा।

सरकार भले ही वर्तमान में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए उपभोग (consumption) को बढ़ावा देने पर ज़ोर दे रही हो, लेकिन इस बीच वेतन आयोग की देरी ने केन्‍द्रीय कर्मियों एवं पेंशनभोगियों की चिंताओं को और गहरा कर दिया है।

वेतन आयोग का इतिहास: पहले वेतन आयोगों का सफर

भारत में अब तक कुल 7 केंद्रीय वेतन आयोग बनाए जा चुके हैं। इन आयोगों ने सरकारी कर्मचारियों के वेतन, भत्तों और सुविधाओं को समय के साथ सामंजस्य में लाने का काम किया है।

इनमें से पहला वेतन आयोग 1946 में स्वतंत्रता से पहले ही बना था और उसी साल लागू भी हो गया। इसके बाद प्रत्येक आयोग लगभग हर दस वर्षों में गठित किया गया है ताकि सरकारी वेतन को समकालीन आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप बनाया जा सके।

6वें और 7वें वेतन आयोग ने वेतन ढांचे में आधुनिक बदलाव किए, जैसे खतरनाक कार्यों के लिए risk insurance की जगह risk allowance और हेल्थ इंश्योरेंस योजना की शुरुआत।

हर आयोग औसतन 10 साल में एक बार गठित किया जाता है और इनकी सिफारिशें केंद्र के साथ-साथ राज्यों और सार्वजनिक उपक्रमों पर भी असर डालती हैं।

8वें वेतन आयोग से क्या हैं उम्मीदें?

वर्तमान आयोग से जुड़ी जो चर्चाएं सामने आ रही हैं, उनमें कुछ प्रमुख मुद्दे ये हो सकते हैं:

  • वेतन में बढ़ोतरी: न्यूनतम बेसिक पे में अच्छी-खासी बढ़ोतरी की संभावना है।
  • फिटमेंट फैक्टर: सभी वेतन ग्रेड में समान बढ़ोतरी के लिए फिटमेंट फैक्टर को बढ़ाया जा सकता है।
  • भत्ते: महंगाई भत्ता (DA), मकान किराया भत्ता (HRA), यात्रा भत्ता (TA) आदि में संशोधन की उम्मीद है ताकि ये वर्तमान जीवन-यापन लागत के अनुसार हों।
  • पेंशन सुधार: पेंशन प्रणाली को नया रूप दिया जा सकता है और इसे वेतन ढांचे के साथ तालमेल में लाने पर ज़ोर होगा।
  • प्रदर्शन आधारित वेतन: काबिल कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने के लिए Performance Linked Incentives शुरू करने की चर्चा भी है।
  • वेतनमानों का विलय और उन्नयन: मंत्रालयों व विभागों में विभिन्न संवर्गों के वेतनमानों को मिलाने और अपग्रेड करने पर विचार हो सकता है।

वेतन आयोग कैसे काम करता है?

वेतन आयोग अपनी सिफारिशें कई फैक्टर के आधार पर बनाता है – जैसे महंगाई दर, देश की वित्तीय स्थिति, सरकारी राजस्व और कर्मचारियों की अपेक्षाएं। अंत में वित्त मंत्रालय की Department of Expenditure इन सिफारिशों की समीक्षा करती है और इन्हें लागू करने का फैसला लेती है।

कर्मचारी अपने संभावित नए वेतन का अंदाज़ा लगाने के लिए फिटमेंट फैक्टर को मौजूदा बेसिक पे से गुणा कर सकते हैं।

पिछली बार कितना समय लगा था?

6वां वेतन आयोग – गठन से लेकर लागू होने तक लगभग 2 साल का समय।
7वां वेतन आयोग – 22 महीने में प्रक्रिया पूरी हुई।

अगर इतिहास को देखा जाए तो 8वें वेतन आयोग को लागू होने में भी लगभग दो साल का वक्त लग सकता है — बशर्ते अभी समिति का गठन हो जाए। लेकिन वर्तमान में यही सबसे बड़ी चिंता है कि जब गठन ही नहीं हुआ, तो आगे की प्रक्रिया कैसे बढ़ेगी?

निष्कर्ष

8वें वेतन आयोग से जुड़े फैसलों का असर केवल वेतन तक सीमित नहीं होगा, बल्कि यह करोड़ों लोगों की आर्थिक स्थिरता, रिटायरमेंट प्लानिंग और जीवनस्तर से जुड़ा है। ऐसे में समिति के गठन में हो रही देरी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की चिंता को बढ़ा रही है।

अब देखना ये है कि केन्‍द्र सरकार इस बढ़ते दबाव और उम्मीदों के बीच कब ठोस कदम उठाती है।

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